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चुनाव काल में पूछे जाने वाले कार्यकर्ताओ को जी-जान लगाने के बाद भी अगले 4 साल तक पूछते भी नही उनके नेता.. (नितिन सिन्हा)

एक राजनीतिक कार्यकर्ता का दर्द..

चुनाव काल में पूछे जाने वाले कार्यकर्ताओ को जी-जान लगाने के बाद भी अगले 4 साल तक पूछते भी नही उनके नेता..

नितिन सिन्हा की ✒️ से…….

रायगढ़:- आपको ध्यान होगा कि प्रदेश की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने अपने अथक प्रयास से वर्ष 2018 में पार्टी को 15 साल पुराने राजनीतिक वननास के बाद सत्ता में वापसी करवाया था। पूरे चुनावी वर्ष में 2017-18 में कार्यकर्ताओं ने ऐसा उत्साह दिखाया था कि वे अपने घर को फूंक कर भी सम्भावित या घोषित पार्टी प्रत्यासी को जीत दिलाएंगे।

साल 2018 के आते ही सत्ताधारी और विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं का जोश देखते बनता था। उनमें यही जोश और जुनून मतगणना दिनांक तक बना रहा। पूरे साल एक एक पार्टी कार्यकर्ताओं के द्वारा की गई तन-मन धन की सेवा का परिणाम पार्टी प्रत्याशी की जीत कर साथ सामने आया था। परन्तु यह क्या पार्टी प्रत्याशी ने पदभार ग्रहण करते ही सबसे पहले उन कार्यकर्ताओं को सबसे पहले यह सोंच कर किनारे कियॉ जिनकी निःस्वार्थ सेवा में उन्हें अपना भावी प्रतिस्पर्धी नजर आने लगा। थोड़े समयांतर के बाद सत्ता के सुख में डूबे तत्कालीन प्रत्यासी जब विधायक और मंत्री बन गए तो लगभग अधिकांश कार्यकर्ताओं को उन्होंने दर किनार कर दिया।

उनके इर्द गिर्द कार्यकर्ताओं की जगह स्वार्थी या अवसरवादियों की भीड़ जमा हो गई। इनमें वे लोग ज्यादे शामिल हुए जिन्होंने उन्हें गत चुनाव को हराने में कोई कसर बाकी नही रख छोड़ी थी। परन्तु चाटुकारिता के अपने वंशानुगत गुण की वजह से आज वही लोग निर्वाचित पार्टी प्रत्यासी अर्थात विधायक,सांसद या मंत्री गणों के सबसे करीबी बन चुके है।

जबकि जीत के बाद से ही कार्यकर्ता दूर किया जा चुका है। इस दर्द के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं ने करीब 3 साल गुजार लिए है। उनकी मेहनत से जीता हुआ पार्टी प्रत्याशी पहले क्रम में चाटुकारों से फिर ठेकेदारों से और फिर रिस्तेदारों के बीच घिरे रहना पसंद करने लगा है। वस्तुतः उसे पार्टी कार्यकर्ताओं के दुःख-सुख से अब कोई सरोकार नही रहा है।

सोशल मीडिया में कई बार छलका सत्ताधारी पार्टी कार्यकर्ताओं का दर्द, वे लिख रहे है कि..भुला दिए गए कार्यकर्ता

पार्टी की सरकार आने के बाद भी कार्यकर्ताओं में अपने ही नेताओं के प्रति भारी आक्रोश

साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं की पूछ परख नहीं होने के कारण पार्टी की अंतर्कलह सोशल मीडिया में दिखने लगी है.प्रदेश भर में पार्टी के कार्यकर्ता अब खुलकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक के माध्यम से नेताओं को नसीहत देते दिख रहे हैं। उनका सीधे तौर पर कहना है कि अब भी समय है,सुधर जाओ वरना कहीं का नहीं छोड़ेंगे। कई कार्यकर्ताओं ने यहां तक लिख दिया कि नेताओं के आसपास घूमने वाले लोग कभी सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी का झंडा तक नहीं उठाए हैं। परन्तु मान्यवरों के द्वारा सिर्फ उन्हें ही तरजीह दिया जाना कतई उचित नही है।

वहीं जिन्होंने पार्टी को जीत दिलाई उन्हें दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर अलग कर दिया गया है.हमारे अपने नेताओं की नजर में चाटुकारिता करने वालों का ही महत्व रह गया है.

दरअसल में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा,नगरी निकाय और फिर पंचायत चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं की पूछ परख अपनी पार्टी में नहीं हो रही है.खासकर सत्ताधारी पार्टी में, सत्ता पाने के बाद लगातार खबरें यह निकल कर आ रही है कि सत्ताधारी पार्टी के नेता अपने काम या जिम्मेदारी पर कम परन्तु धन संग्रह करने के काम में ज्यादा रुझान रखने लगे हैं.जो शासकीय सप्लाई का कार्य और ठेका इत्यादि कार्यकर्ताओं को मिलने चाहिए थे। उनमें से अधिकांश बड़े नेता अपने नाम पर या अपने रिस्तेदारों और चाटुकारों के माध्यम से ही करवाने लगे हैं. यहां तक कि छोटे-छोटे सप्लाई का काम भी बाहर के ठेकेदारों को दिया जा रहा है.इनमें ज्यादातर ठेकेदार वही है जिन्होंने पूर्व सरकार के कार्यकाल में जम कर पैसा कमाया है। आज हालात इतने बदत्तर हो चुके है कि जिसकी जैसी पहुंच है वह वैसे पार्टी में काम कर रहा है.लेकिन जिन्होंने सत्ता दिलाने में कांग्रेस की बड़ी मदद की थी,आज उनकी पूछ परख लगभग बन्द हो गई है। यहां तक की उन्हें दर-किनार कर दिया गया है.सत्ता में आने के बाद जो वादे पार्टी के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं ने कार्यकर्ताओं से किये थे, वे सभी मान्यवरों के द्वारा वादे भुला दिये गये हैं. प्रदेश भर में लगभग यही हालात है विशेष कर रायगढ़ जिले में केबिनेट मंत्री से लेकर तमाम विधायकों ने ऐसा ही आचरण पेश किया है। हालाकि इस बार दोनों पार्टी के कार्यकर्ता पूरी तरह से सजग है उन्होने अंदर ही अंदर पूरी तरह से मन बना लिया है कि अगर मान्यवरों के आचरण में जल्दी ही बदलाव नही आया तो आगामी विधान सभा चुनाव में उनके साथ अपनी सरकार को कार्यकर्ताओं और अप्रत्यक्ष समर्पित समर्थकों के द्वारा अपना महत्व समझा दिया जाएगा।।

महिला कार्यकर्ताओं का अपना अलग ही दर्द है..

प्रदेश भर में सत्ताधारी पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं का अपना अलग ही दर्द है उनका कहना है कि यह क्या बात हुई.? महिला कार्यकर्ता नगर निकाय,पंचायत,विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में जी-जान लगाकर मेहनत करती है। बदले में उन्हें सम्मान जनक प्रतिफल मिलना तो दूर महिला कार्यकर्ताओ की पूछ- परख तक नही की जा रही है। महिला कार्यकर्ताओं की मेहनत के बदले पार्टी के ज्यादातर पद ऐसे पुरुष वर्गों और पैसे वालों को दिए गए हैं जिनकी अपनी निष्ठा न तो पार्टी के साथ रही है न ही प्रत्याशी के साथ ।

विधायक-पूर्व विधायकों के जिन परिचितों का पार्टी कार्यक्रमों या पार्टी के सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं होता है आमतौर पर पार्टी पदाधिकारियों के द्वारा उन्हें ही अधिक तवज्जो दिया जा रहा है। भले ही चुनाव जीतने या पार्टी को संगठित रखने में उनका अपना कोई योगदान न रहा हो।

वही सत्ताधारी पार्टी के अंतर्गत होने वाले सरकारी कामों,ठेकों और सप्लाई कार्यों में भी अपरिचित पुरुष वर्ग का ही बोलबाला रहा है। लम्बे समय तक ऐसा उत्पीड़न महिला कार्यकर्ताओं को सहते रहना भला किस हद तक जायज है.??